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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2776
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 8

क्षेत्रीय विकास की संकल्पना, सिद्धान्त और मॉडल

(Concept, Theories and Models of Regional Planning)

प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

विकास का 'सिद्धान्त' एक सीमित धारणा है। इसे 'परिप्रेक्ष्य' या 'विश्लेषण' कहना अधिक उपयुक्त है। विकास का अर्थ, इसके बदलते परिप्रेक्ष्य के साथ परिवर्तित हो गया है : आधुनिकीकरण का सिद्धान्त, निर्भरता, नवशास्त्रीय अर्थशास्त्र, वैकल्पिक विकास, मानव विकास और विकासोत्तर। यहाँ नियोजित परिवर्तन या अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) के रूप में विकास और आसन्न परिवर्तन एक अंतः प्रक्रिया के रूप में विकास इनके बीच में अंतर है। आधुनिकीकरण के सिद्धान्त और निर्भरता के सिद्धान्त ने ऊपरी और बाहरी तौर पर विकास के तर्क का पालन किया।

विकास के विचार के प्रारंभिक पुरोधा एडम स्मिथ, डेविड रिकार्डो, थॉमस माल्थस और जॉन स्टुअर्ट मिल थे। स्मिथ के द वेल्थ ऑफ नेशंस, के अनुसार इंग्लैंड में धन-सम्पत्ति की अधिकता श्रम और पूंजी के भंडारण की वृद्धि के द्वारा संचालित हुई। माल्थस ने विकास अवरोधी कारकों के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि की सीमितता पर भी जोर दिया। मार्क्स ने ऐतिहासिक रूप से निश्चयात्मक प्रक्रिया में मानव समाजों के विकास में पाँच चरणों की पहचान की। ये सभी शास्त्रीय विचारक सामंती और ग्रामीण से शहरी और औद्योगिक तक समाजों के विकास से चिंतित थे और मानते थे कि विकास का एक ही प्रक्षेप पथ है जिसका सभी देश अनुसरण करते हैं।

आधुनिकीकरण का सिद्धान्त

1950 और 1960 के दशक में, आधुनिकीकरण के सिद्धान्त ने अत्यधिक विकसित देशों में विकास की प्रक्रिया में सामान्यताओं की पहचान करने का प्रयास किया। यह एक द्वैतवादी विश्वदृष्टि पर आधारित है, जो आधुनिक जीवन शैली की तुलना में पारंपरिक जीवन शैली का और पश्चिमी संस्कृति की तुलना में स्वदेशी का विरोध करता है। ऐसा मानना है कि 'ट्रिकल डाउन' (अवरोही प्रवाह) राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर विकसित विश्व से अविकसित विश्व में घटित होगा। जेम्स ओ कॉन्नेल आधुनिकीकरण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जिससे होकर एक पारंपरिक या एक पूर्व-प्रौद्योगिकीय समाज गुजरता है, जैसे- जैसे यह मशीनी प्रौद्योगिकी, तर्कसंगत और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण और अत्यधिक विभेदित सामाजिक संरचनाओं की विशेषता वाले समाज में परिवर्तित हो जाता है। इसका अर्थ पश्चिमी राजनीतिक और आर्थिक संस्थान को अपनाना है। आधुनिकीकरण सिद्धान्त यह प्रस्तावित करता है कि पूंजीवादी आर्थिक तंत्र के प्रयोग के माध्यम से तीसरी दुनिया मे सामाजिक विकास हो सकता है। यह सामाजिक परिवर्तन के बारे में दो विचारों से विकसित हुआ-

(कु) पारंपरिक बनाम आधुनिक समाज की अवधारणा।

(ख) सकारात्मकतावाद जिसे वृद्धि के प्रगतिशील चरणों में समाज के उद्भव के रूप में देखा गया।

आधुनिकीकरण के सिद्धान्तों ने एक प्रकार से लिखा कि अल्प विकसित देशों के लिए 'नियमावली कैसे विकसित की जाए। वे सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास के समस्या-समाधानवेत्ता और नीति- उन्मुख सिद्धान्त थे। विश्लेषण की इकाई स्थानीय समुदायों के माध्यम से व्यक्ति से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय राज्यों तक होती हैं। अमेरिका के राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक हितों का विस्तार; नव स्वतंत्र देशों का उदय और शीत युद्ध : ये ऐसे कारक थे जिनके कारण 1950 और 1960 के दशक में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के समाजों और उनके आर्थिक विकास तथा सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन का अध्ययन हुआ।

उनकी आलोचना करने से पहले, ए०जी० फ्रैंक (1967) ने आधुनिकीकरण के सिद्धान्तों के अन्तर्गत तीन दृष्टिकोणों/प्रणालियों का मंत्र दिया-

(क) आदर्श प्ररूपी सूचकांक पद्धति

आदर्श-प्ररूपी सूचकांक पद्धति या अंतर दृष्टिकोण में, एक विकसित अर्थव्यवस्था की सामान्य विशेषताएं एक आदर्श प्रकार के रूप में सारगर्भित होती हैं जो एक गरीब समाज की आदर्श विशिष्ट विशेषताओं से विषम होती हैं। यहां विकास को एक प्रकार से दूसरे प्रकार में रूपान्तरण के रूप में देखा जाता है। दोनों के बीच एक अंतर की पहचान करके, एक विकास कार्यक्रम पर काम किया जाता है। इस दृष्टिकोण के दो प्रकार हैं-

(1) होसेलिट्ज (1960) द्वारा अनुकरणीय टालकॉट पारसन्स का परिवर्ती चर दृष्टिकोण ( पैटर्न वैरिएबल अप्रोच)

(2) रोस्तो का ऐतिहासिक चरण दृष्टिकोण।

टालकॉट पारसन्स का परिवर्ती चर दृष्टिकोण

पारसन्स के अनुसार, किसी भी सामाजिक क्रिया और सामाजिक प्रणाली का विश्लेषण केवल परिवर्तन के पाँच युग्मों प्रतिमान संदर्भ में किया जा सकता है, जो संभवतः सभी सामाजिक क्रियाओं की विशेषता बताते हैं। पार्सन्स का परिवर्ती चर किसी भी सामाजिक प्रणाली में कर्त्ताओं की भूमिका से सम्बन्धित आशाओं/ अपेक्षाओं में मूल्य अभिविन्यास के वैकल्पिक प्रतिमान हैं। पांच विषम परिवर्ती चर भावात्मक तटस्थता - प्रभावकारिता, सार्वभौमिकता- विशेषवाद, उपलब्धि- प्रतिलेखन, विशिष्टता-प्रसारवाद, और आत्म- अभिविन्यास - सामूहिक अभिविन्यास हैं।

बर्ट होसेलिट्ज ने किसी भी देश में विकास की प्रक्रिया को समझाने के लिए पारसन्स के आधुनिकीकरण प्रतिमान परिवर्तन का उपयोग किया। उन्होंने आर्थिक विकास के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में सांस्कृतिक परिवर्तन पर जोर दिया। उन्होंने आधुनिक और पारंपरिक समाजों में लोगों के बीच व्यवहार में अंतर को देखने के लिए पार्सन्स प्रतिमान परिवर्तन दरों का उपयोग किया। विकसित देश सार्वभौमिकता, उपलब्धि अभिविन्यास, स्नेह तटस्थता, कार्यात्मक विशिष्टता और आत्म- अभिविन्यास के प्रतिमान परिवर्तन को प्रदर्शित करते हैं। दूसरी ओर, अल्पविकसित देशों को विकसित देशों से विपरीत विशेषताओं से चित्रित किया जाता है - विशेषवाद, आरोपण, प्रभावकारिता, कार्यात्मक प्रसारवादिता और सामूहिक अभिविन्यास। होसेलिट्ज ने कहा कि विकसित करने के लिए, अविकसित देशों को अविकसितता के प्रतिमान परिवर्तन चरों को समाप्त करना चाहिए और विकास के तरीकों को अपनाना चाहिए। चरों से युक्त अविकसित समाज से किसी समाज का विस्थापन होने को ही विकास समझा जाता है।

गन्डर फ्रैंक ने पार्सन्स के आधुनिकीकरण के सिद्धान्त की आलोचना की, उन्होंने कहा कि यह आनुभविक रूप से अमान्य, सैद्धांतिक रूप से अपर्याप्त और नीति-वार अप्रभावी है। विकासाधीन और विकास समाज में भूमिकाओं की विशेषताओं के साथ संबद्ध नहीं है बल्कि यह समाज की संरचना के साथ जुड़ा हुआ है।

रोस्तो का ऐतिहासिक चरण का दृष्टिकोण

कार्ल मार्क्स ने परिकल्पित किया कि अर्थव्यवस्था गुलामी, सामंतवाद और पूंजीवाद के चरणों से गुजरती है। ये चरण वास्तव में, तकनीकी विकास के बाद कृषि से औद्योगिक तक अर्थव्यवस्था के अवस्थांतर का प्रतिनिधित्व करते हैं। बाद में, डब्ल्यू डब्ल्यू० रोस्तो की थीसिस भी इस बात की वकालत करती है कि अर्थव्यवस्था को एक चरण से दूसरे चरण तक ऐतिहासिक विकासवादी अनुक्रम से होकर गुजरना होगा।

वॉल्ट डब्ल्यू रोस्तो के विकास के चरणों का सिद्धान्त सूचकांक दृष्टिकोण का दूसरा संस्करण है। द स्टेजिस ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ : ए नॉन कम्यूनिस्ट मैनिफेस्टो में रोस्तो (1960) ने अविकसित और विकसित विश्व के बीच अंतर में विकास के कुछ मध्यवर्ती चरणों की पहचान की। माना जाता है कि विकास में अत्यधिक गरीब कृषि समाजों से लेकर अत्यधिक औद्योगिक बड़े पैमाने पर खपत वाली अर्थव्यवस्थाओं तक सभी अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक विकास के पांच चरणों से होकर गुजर रही हैं। ये चरण इस प्रकार हैं-

(i) पारंपरिक समाज वे हैं जहां 'उत्पादन कार्य सीमित हैं; तथा प्रति व्यक्ति उत्पादन कम है और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की अप्राप्यता के कारण वृद्धि नहीं करता है। यहां परिवार और कबीला समूहीकरण पर जोर दिया जाता है। मूल्य 'भाग्यवादी' और राजनीतिक शक्ति विकेन्द्रित होती है।

(ii) दूसरा चरण आर्थिक 'उत्थान' (टेक-ऑफ) के लिए पूर्व-परिस्थितियों के एक समुच्चय का विकास है। यह परिवर्तन संक्रमण का दौर है जिसमें पारंपरिक संस्थाएं बदलने लगती हैं। अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए तैयार हो जाती है।

(iii) 'उत्थान' (टेक-ऑफ) चरण, जहां स्थिर विकास के लिए पुराने प्रतिरोधों से उबरा जाता है और वृद्धि अर्थव्यवस्था की सामान्य स्थिति बन जाती है।

(iv) 'परिपक्वता अभियान' (ड्राइव टू मैच्योरिटी), जो कि अर्थव्यवस्था के बढ़ते परिष्कार का चरण है अर्थात् नए उद्योगों को विकसित किया जाता है, आयात पर निर्भरता कम होती है और निर्यात गतिविधियाँ शुरू होती हैं। लाभ अधिकतमकरण जीवित रहने की आवश्यकता बन जाता है।

(v) उच्च व्यापक उपभोग की अवस्था वह है जहाँ एक समृद्ध आबादी और टिकाऊ व परिष्कृत उपभोक्ता उत्पाद और सेवाएँ हैं। समाज के इस चरण में सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जाता है तथा सामाजिक कल्याण और सुरक्षा के लिए अधिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। यहाँ एक कल्याणकारी अवस्था का उदय होता है।

उत्थान पूर्व (टेक-ऑफ) चरणों में अर्थव्यवस्थाओं को सहायता दी जानी चाहिए ताकि उन्हें उत्थान ( टेक-ऑफ) चरण में लाया जा सके। विकास के लिए आवश्यक पूर्व परिस्थिति बचत को बढ़ावा देने और पूंजी उत्पन्न करने, अपने लोगों की प्रबंधकीय और उद्यमशीलता व कुशाग्रता को विकसित करने और आर्थिक विकास की नई चुनौतियों से निपटने के लिए संस्थागत और संरचनात्मक सुधार करने के लिए समाज की बढ़ती दक्षता को संदर्भित करती है। अंतर दृष्टिकोण में मुख्य दोष यह है कि यह विकास और अविकसितता के अन्तर्राष्ट्रीय ढांचे को ध्यान में नहीं रखता है, अविकसितता की घरेलू संरचना जिसका केवल एक हिस्सा मात्र है।

(ख) प्रसारवादी या उत्संस्करणीय दृष्टिकोण

इस दृष्टिकोण के अनुसार, विकसित से अविकसित देशों में सांस्कृतिक तत्वों के प्रसार से विकास होता है। इन सांस्कृतिक तत्वों की पहचान पूंजी, प्रौद्योगिकी और संस्थानों सहित की जा सकती है। कम विकसित समाजों को विकसित नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे विकास की बाधाओं के कारण विकसित विश्व में होने वाले परिवर्तनों से प्रभावित होने में सक्षम नहीं हैं।

(ग) मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

यह इस धारणा पर टिकी हुई है कि यह मूल्य, उद्देश्य या मनोवैज्ञानिक शक्तियाँ हैं जो अंततः आर्थिक और सामाजिक विकास की दर निर्धारित करते हैं। इस शैली की सबसे प्रभावशाली किताबों में से एक है डेविड मैकलेलैंड (1961) द्वारा रचित द अचीविंग सोसाइटी, जो तर्क देती है कि उच्च स्तर की उपलब्धि वाले समाज में ऊर्जावान उद्यमी उत्पन्न होंगे जो बदले में अधिक तेजी से आर्थिक विकास करेंगे। एक मनोवैज्ञानिक विशेषता है जिसे उन्होंने 'एन - अचीवमेंट', या उपलब्धि की आवश्यकता कहा, उद्यमशीलता की भूमिकाओं के लिए अनुकूल व्यक्ति, जो 'उपलब्धि प्रेरणा प्रशिक्षण' के माध्यम से वर्धित हो सकते हैं।

प्रसारवादी दृष्टिकोण की तरह, इस दृष्टिकोण में भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता कि दी गई सामाजिक संरचनाओं में किसी भी बदलाव की आवश्यकता है, ताकि आर्थिक विकास के लिए परिस्थितियां बन सकें। यह व्यक्तियों से अपील करता है कि वे सामाजिक प्रगति की राह पर आगे बढ़ने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को परिवर्तित करें।

कुल मिलाकर आधुनिकीकरण का सिद्धान्त, पारंपरिक समाजों के विशिष्ट महत्व को कम आंकता है और अत्यधिक यूरोकेन्द्रित है। यह विविध इतिहास और संस्कृति की अनदेखी करके विकास को अराजनैतिक बनाता है। आधुनिकीकरण सिद्धान्त में वर्तमान विषय परंपरा के पुनर्मूल्यांकन पर केन्द्रित है, बाधा के रूप में नहीं बल्कि संसाधन के रूप में। आधुनिकता को बहुवचन में विचार करने का चलन भी प्रारंभ हो चुका है और उत्तर -आधुनिकता के साथ संलग्नता का भी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- प्रादेशिक भूगोल में प्रदेश (Region) की संकल्पना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- प्रदेशों के प्रकार का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  3. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश को परिभाषित कीजिए।
  4. प्रश्न- प्रदेश को परिभाषित कीजिए एवं उसके दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राकृतिक प्रदेश से क्या आशय है?
  6. प्रश्न- सामान्य एवं विशिष्ट प्रदेश से क्या आशय है?
  7. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण को समझाते हुए इसके मुख्य आधारों का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के जलवायु सम्बन्धी आधार कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के कृषि जलवायु आधार कौन से हैं? इन आधारों पर क्षेत्रीयकरण की किसी एक योजना का भारत के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित मेकफारलेन एवं डडले स्टाम्प के दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  11. प्रश्न- क्षेत्रीयकरण के भू-राजनीति आधार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- डॉ० काजी सैयदउद्दीन अहमद का क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण क्या था?
  13. प्रश्न- प्रो० स्पेट के क्षेत्रीयकरण दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- भारत के क्षेत्रीयकरण से सम्बन्धित पूर्व दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य भी बताइए।
  16. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन की आवश्यकता क्यों है? तर्क सहित समझाइए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नियोजन पद्धतियों पर लेख लिखिए।
  18. प्रश्न- नियोजन तथा आर्थिक नियोजन से आपका क्या आशय है?
  19. प्रश्न- प्रादेशिक नियोजन में भूगोल की भूमिका पर एक निबन्ध लिखो।
  20. प्रश्न- हिमालय पर्वतीय प्रदेश को कितने मेसो प्रदेशों में बांटा जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- भारतीय प्रायद्वीपीय उच्च भूमि प्रदेश का मेसो विभाजन प्रस्तुत कीजिए।
  22. प्रश्न- भारतीय तट व द्वीपसमूह को किस प्रकार मेसो प्रदेशों में विभक्त किया जा सकता है? वर्णन कीजिए।
  23. प्रश्न- "हिमालय की नदियाँ और हिमनद" पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- दक्षिणी भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- पूर्वी हिमालय प्रदेश का संसाधन प्रदेश के रूप में वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- भारत में गंगा के मध्यवर्ती मैदान भौगोलिक प्रदेश पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
  27. प्रश्न- भारत के उत्तरी विशाल मैदानों की उत्पत्ति, महत्व एवं स्थलाकृति पर विस्तृत लेख लिखिए।
  28. प्रश्न- मध्य गंगा के मैदान के भौगोलिक प्रदेश पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  29. प्रश्न- छोटा नागपुर का पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- प्रादेशिक दृष्टिकोण के संदर्भ में थार के मरुस्थल की उत्पत्ति, महत्व एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- क्षेत्रीय दृष्टिकोण के महत्व से लद्दाख पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  32. प्रश्न- राजस्थान के मैदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- विकास की अवधारणा को समझाइये |
  34. प्रश्न- विकास के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- सतत् विकास का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- सतत् विकास के स्वरूप को समझाइये |
  37. प्रश्न- सतत् विकास के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- सतत् विकास के महत्वपूर्ण सिद्धान्त एवं विशेषताओं पर विस्तृत लेख लिखिए।
  39. प्रश्न- अल्प विकास की प्रकृति के विभिन्न दृष्टिकोण समझाइए।
  40. प्रश्न- अल्प विकास और अल्पविकसित से आपका क्या आशय है? गुण्डरफ्रैंक ने अल्पविकास के क्या कारण बनाए है?
  41. प्रश्न- विकास के विभिन्न दृष्टिकोणों पर संक्षेप में टिप्पणी कीजिए।
  42. प्रश्न- सतत् विकास से आप क्या समझते हैं?
  43. प्रश्न- सतत् विकास के लक्ष्य कौन-कौन से हैं?
  44. प्रश्न- आधुनिकीकरण सिद्धान्त की आलोचना पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  45. प्रश्न- अविकसितता का विकास से क्या तात्पर्य है?
  46. प्रश्न- विकास के आधुनिकीकरण के विभिन्न दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालिये।
  47. प्रश्न- डॉ० गुन्नार मिर्डल के अल्प विकास मॉडल पर विस्तृत लेख लिखिए।
  48. प्रश्न- अल्प विकास मॉडल विकास ध्रुव सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा प्रादेशिक नियोजन में इसकी सार्थकता को समझाइये।
  49. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के प्रतिक्षिप्त प्रभाव सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- विकास विरोधी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- पेरौक्स के ध्रुव सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  52. प्रश्न- गुन्नार मिर्डल के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता की अवधारणा को समझाइये
  54. प्रश्न- विकास के संकेतकों पर टिप्पणी लिखिए।
  55. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय असंतुलन की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमता निवारण के उपाय क्या हो सकते हैं?
  57. प्रश्न- क्षेत्रीय विषमताओं के कारण बताइये। .
  58. प्रश्न- संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिए कुछ सुझाव दीजिये।
  59. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन का मापन किस प्रकार किया जा सकता है?
  60. प्रश्न- क्षेत्रीय असमानता के सामाजिक संकेतक कौन से हैं?
  61. प्रश्न- क्षेत्रीय असंतुलन के क्या परिणाम हो सकते हैं?
  62. प्रश्न- आर्थिक अभिवृद्धि कार्यक्रमों में सतत विकास कैसे शामिल किया जा सकता है?
  63. प्रश्न- सतत जीविका से आप क्या समझते हैं? एक राष्ट्र इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है? विस्तारपूर्वक समझाइये |
  64. प्रश्न- एक देश की प्रकृति के साथ सामंजस्य से जीने की चाह के मार्ग में कौन-सी समस्याएँ आती हैं?
  65. प्रश्न- सतत विकास के सामाजिक घटकों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- सतत विकास के आर्थिक घटकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  67. प्रश्न- सतत् विकास के लिए यथास्थिति दृष्टिकोण के बारे में समझाइये |
  68. प्रश्न- सतत विकास के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के बारे में लिखिए।
  69. प्रश्न- विकास और पर्यावरण के बीच क्या संबंध है?
  70. प्रश्न- सतत विकास के लिए सामुदायिक क्षमता निर्माण दृष्टिकोण के आयामों को समझाइये |
  71. प्रश्न- सतत आजीविका के लिए मानव विकास दृष्टिकोण पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  72. प्रश्न- सतत विकास के लिए हरित लेखा दृष्टिकोण का विश्लेषण कीजिए।
  73. प्रश्न- विकास का अर्थ स्पष्ट रूप से समझाइये |
  74. प्रश्न- स्थानीय नियोजन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- भारत में नियोजन के विभिन्न स्तर कौन से है? वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- नियोजन के आधार एवं आयाम कौन से हैं? वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में क्षेत्रीय उद्देश्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  78. प्रश्न- आर्थिक विकास में नियोजन क्यों आवश्यक है?
  79. प्रश्न- भारत में नियोजन अनुभव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- भारत में क्षेत्रीय नियोजन की विफलताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  81. प्रश्न- नियोजन की चुनौतियां और आवश्यकताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- बहुस्तरीय नियोजन क्या है? वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था के ग्रामीण जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना कीजिए।
  84. प्रश्न- ग्रामीण पुनर्निर्माण में ग्राम पंचायतों के योगदान की विवेचना कीजिये।
  85. प्रश्न- संविधान के 72वें संशोधन द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में जो परिवर्तन किये गये हैं उनका उल्लेख कीजिये।
  86. प्रश्न- पंचायती राज की समस्याओं का विवेचन कीजिये। पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव भी दीजिये।
  87. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यक उपागम की व्याख्या कीजिये।
  88. प्रश्न- साझा न्यूनतम कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा प्रस्तुत कीजिये।
  89. प्रश्न- भारत में अनुसूचित जनजातियों के विकास हेतु क्या उपाय किये गये हैं?
  90. प्रश्न- भारत में तीव्र नगरीयकरण के प्रतिरूप और समस्याओं की विवेचना कीजिए।
  91. प्रश्न- पंचायती राज व्यवस्था की समस्याओं की विवेचना कीजिये।
  92. प्रश्न- प्राचीन व आधुनिक पंचायतों में क्या समानता और अन्तर है?
  93. प्रश्न- पंचायती राज संस्थाओं को सफल बनाने हेतु सुझाव दीजिये।
  94. प्रश्न- भारत में प्रादेशिक नियोजन के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के महत्व का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के सम्मिलित कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- भारत के नगरीय क्षेत्रों के प्रादेशिक नियोजन से आप क्या समझते हैं?

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